Rajya Sabha and Lok Sabha: लोकसभा और राज्यसभा ये दोनों ही भारत की दो प्रमुख विधान सभाएँ हैं। ये दोनो सभा देश की राजनीतिक प्रतिनिधियों को चुनने का काम करती है।
लोकसभा, जिसमें “लोक” का मतलब जनता से जोड़ा जाता है। लोकसभा को लोगों का सदन भी कहा जाता है। यह विधानसभा का सबसे बड़ा हाउस है। लोकसभा के लिए 545 सदास्य चुने जाते हैं, जिन्हे मेंमबर ऑफ पार्लियामेंट भी कहा जाता है। इन सांसदों को प्रत्येक पांच वर्ष पर चुना जाता है। लोकसभा की मुख्य जिम्मेदारी है सरकार को बनाना और सरकार के फैसलों पर मतदान करना। वहीं राज्यसभा संसद का ऊपरी सदन है। इसमें 250 सदस्य होते जिन्हें अलग अलग राज्यों से चूना जाता है। इनमें 238 सदस्यों को विधानसभा सदस्यों द्वारा चुना जाता है और 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा कला, साहित्य, ज्ञान, और सेवाओं में उनके योगदान के आधार पर चुना जाता है। राज्य सभा की मुख्य जिम्मेदारी होती है देश के अलग-अलग राज्यों के मुद्दों को सरकार के सामने रखना। इसके साथ ही इसकी जिम्मेदारी होती है प्रस्तुत कानूनों को पारित करना।
राज्यसभा का इतिहास
राज्यसभा का इतिहास भारत से समृद्ध एवं लोकतांत्रिक तारीख से जुड़ा हुआ है। राज्यसभा, भारत का प्रमुख विधान सभा है जिसका गठन और संकल्प राज्यसभा अधिनियम के तहत किया गया था। राज्यसभा का गठन 3 अप्रैल 1952 को किया गया था। इससे पहले ब्रिटिश इंडिया पीरियड में इसे ऊपरी सदन बनाया गया था जिसे काउन्सिल ऑफ स्टेट कहा जाता था। लेकिन 23 अगस्त 1954 को इसका नाम काउन्सिल ऑफ स्टेट से बदलकर राज्यसभा कर दिया गया। राज्यसभा के सदनों का चुनाव अलग-अलग तिथि पर होता है, ताकि हर समय राज्य की स्थिति और राजनीतिक परिस्थितयों का समावेश हो सके। राज्यसभा देश के राज्यों के साथ-साथ भारत की एकता और विविधता को भी दर्शाता है।
राज्यसभा सदस्य का चुनाव किस प्रकार किया जाता है?
राज्यसभा चुनाव में वोटों की प्रक्रिया लोकसभा चुनाव में बिल्कुल अलग होती है। इसके चुनाव में बैलेट पेपर पर चुनाव के निशान की जगह कैंडिडेट के नाम लिखे होते हैं। इस चुनाव में अन्य चुनावों की तरह किसी एक प्रत्याशी को वोट नहीं देना होता है। राज्यसभा की चुनाव में एक से ज्यादा उम्मीदवारों को वरीयता के आधार पर क्रमशः वोट दिया जाता है। इस चुनाव में मतदान केंद्र पर वोटरों को बैलेट पेपर पर अपनी पसंद के उम्मीदवार के आगे नंबर लिखकर वोट देना होता है।
वहीं राज्यसभा में वोटिंग का फॉर्मूला अन्य चुनावों से अलग होता है। राज्यसभा में वोटिंग का फॉर्मूला ये है कि किसी राज्य में कितनी राज्यसभा सीटें खाली हैं, उसमें 1 जोड़ा जाता है, फिर उसे कुल विधानसभा सीटों की संख्या से भाग दिया जाता है। इससे जो संख्या आती है, उसमें फिर 1 जोड़ दिया जाता है। यानी की राज्यसभा की एक सीट को जितने के लिए इतने वोटों की जरूरत होती है।
राज्यसभा सदस्यता के लिए क्वालीफिकेशन
संविधान के अनुच्छेद 84 के अनुसार, राज्यसभा के लिए एक उम्मीदवार की आयु कम से कम 30 वर्ष होनी चाहिए। उम्मीदवारों को भारतीय नागरिक होना चाहिए, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधान सभा द्वारा एकल हस्तांतरणीय वोट और आनुपातिक प्रतिनिधित्व का उपयोग करके चुना जाना चाहिए, भारत सरकार के तहत किसी अन्य लाभ कमाने वाले कार्यालय में नहीं होना चाहिए, मानसिक रूप से बीमार नहीं होना चाहिए, और योग्यता संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून द्वारा या उसके तहत उस संबंध में निर्धारित की जा सकती है।
लोकसभा का इतिहास
25 अक्तूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक पहले आम चुनावों के बाद 17 अप्रैल 1952 को सबसे पहले लोकसभा का गठन किया गया था। लोकसभा के सदस्य को इलेक्शन कमीशन द्वारा आयोजित चुनाव जिसमें जनता द्वारा दिए गए वोटों के आधार पर चुना जाता है, जिन्हें प्रत्येक पांच वर्ष पर आयोजित किया जाता है। यह एक स्वतंत्र और आजाद निकाय है, जो संविधान द्वारा संरक्षित है। यहां अदालत या कोई अन्य संस्था नहीं होती है जो इसके निर्णयों पर प्रभाव डाल सके। इसलिए, यह देश के लोगों की आवाज को बढ़ावा देता है और उनके हकों और मांगों की प्रतिष्ठा करता है। यही कारण है कि लोकसभा को देश का “जनता का घर” कहा जाता है, जहां जनता की प्रतिनिधि सभी मुद्दों पर विचार करती हैं और उनके लिए नीतियों को तय करती हैं।
लोकसभा का चुनाव किस प्रकार किया जाता है?
लोक सभा के सदस्यों का चुनाव आम चुनावों के माध्यम से जनता के मताधिकार के आधार पर होता है। देश को 543 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा गया है। जब निर्वाचित सदस्य का पद रिक्त होता है, या रिक्त घोषित किया जाता है या उनका चुनाव अवैध घोषित किया जाता है, तो इसे उपचुनाव द्वारा भरा जाता है। लोकसभा का सामान्य कार्यकाल पांच वर्षों का होता है लेकिन इसे राष्ट्रपति द्वारा पहले भी विघटित किया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आपातकाल के प्रख्यापन के प्रभावी होने की अवधि के दौरान स्वयं संसद द्वारा पारित अधिनियम द्वारा सामान्य कार्यकाल को बढ़ाया जा सकता है। इस अवधि को एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता और किसी भी प्रकार प्रख्यापन के समापन की अवधि से छह महीने से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है।
लोकसभा सदस्यता के लिए क्वालीफिकेशन
लोकसभा का सदस्य होने के लिए किसी व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिए तथा 25 वर्ष से कम आयु का नहीं होना चाहिए तथा अन्य ऐसी अर्हताएँ होनी चाहिए, जो संसद द्वारा निधारित की जाएं या इसके द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित की जाएं।