Reduction in Maternal Mortality Rate: बिहार राज्य में मातृ मृत्यु की दरों में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। ऐसे में ये ख़बर पूरे राज्य वालो के लिए खुशी की बात है। आपको बता दें साल 2018 में यह आंकड़ा 165 का था, जाे साल 2019 में घटकर 149 हाे गया। वहीं इस साल 2023 में जारी हुई एक रिपोर्ट में यह घटकर 130 तक आ पहुंचा है। इस मामले पर बताते हुए राज्य स्वास्थ्य ने कहा कि, उनका टारगेट है कि साल 2030 तक मातृ-मृत्यु अनुपात आंकड़े को घटाकर 70 करना है। इस मिशन को लेकर राज्य के सभी जिलों के स्वास्थ्य विभाग में गाइडलाइन जारी कर दिया गया है। स्वास्थ्य विभाग के कार्यपालक निर्देशक संजय कुमार सिंह ने सभी जिलों में गाइडलाइन का शत-प्रतिशत अनुपालन करने का निर्देश दिया है।
समीक्षा में क्या पाया गया?
इस रिपोर्ट की समीक्षा के दौरान यह पाया गया है कि मातृ मृत्यु दर का मेन कारण हाई रिस्क प्रेग्नेंसी और प्रसव पूर्व चार जांचों का नहीं होना है। इसके साथ ही हाई रिस्क प्रेग्नेंसी वाले महिलाओं में से सिर्फ 5 फीसदी प्रसूताओं की ही पहचान हो पाती है। जबकि इसकी पहचान का आंकड़ा 8 से 10 फीसदी हाेना चाहिए। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि प्रसव के सात दिनाें के अंदर हुई मातृ मृत्यु में 75 पर्सेंट महिला हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के कारण मौत का शिकार हो जाती है। इस रिस्क से बचने के लिए महिलाओं का गर्भावस्था के दौरान 4 बार एएनसी और हाई रिस्क वाली गर्भवती काे 3 अतिरिक्त एएनसी कराने के लिए अनिवार्य रूप से कहा गया है।
क्या दिया गया है गाइडलाइन में?
राज्य में स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किए गए गाइडलाइन में कहा गया है कि, एक बार जब किसी गर्भवती महिला काे हाई रिस्क प्रेग्नेंसी का पता चले तो ऐसे में उस क्षेत्र की एएनएम और आशा की जिम्मेवारी है कि वो उस महिला का तीन अतिरिक्त प्रसव पूर्व जांच कराएं। इसके साथ ही उसके कंडीशन पर लगातार नजर बनाए रखे। जिससे मृत्यु के संभावना को कम किया जा सकता है। इसके अलावा उस महिला को सुरक्षित प्रसव और किसी इमरजेंसी सिचुएशन में जरूरत पड़ने पर नजदीक के प्रथम रेफरल इकाई और प्रसूति विशेषज्ञ से लगातार संपर्क में रखे। इससे मातृ मृत्यु दर को और कम किया जा सकता है