Bihar Caste Census: बिहार में जातीय गणना पर पटना हाईकोर्ट से आने वाले फैसले का लोगों को इंतजार है। इस मामले पर पटना हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच में 3 से 7 जुलाई तक लगातार सुनवाई की गई थी। जिसमें कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसले को सुरक्षित रख लिया था। वहीं इस मामले की अंतिम और फाइनल सुनवाई 14 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में होनी है।
इस मामले में संभावना जताई जा रही है कि जल्द ही चीफ जस्टिसों की बेंच फैसला सुना सकती है। आपको बता दें कि इस गणना में 500 करोड़ से ज्यादा पैसे अबतक खर्च हो चुके है। जिसके बाद इस मामले का मात्र 80% काम ही पूरा हुआ है। पांच दिनों तक चली इस सुनवाई में तीन दिन याचिकाकर्ता को दी गई वहीं अगला दो दिन बिहार सरकार को दिया गया था। जिसमें बिहार सरकार की तरफ से एडवोकेट जनरल पी के शाही ने दलील रखी थी। वहीं इसके फैसले को लेकर लोगों की नजर अब पटना हाई कोर्ट पर है की अब वो क्या फैसला सुनाती है।
आपको बता दें कि अपने खर्च से बिहार सरकार दो चरणों में जातीय गणना करवा रही थी। जिसका पहला चरण पूरा हो चुका था और दूसरे चरण की सुरुआत होने वाली थी। लेकिन इससे पहले ही पटना हाईकोर्ट ने इसपर रोक लगा दिया। इस मामले पर कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि कास्ट सेंसस करने का काम बिहार सरकार का नहीं है। यह काम केंद्र सरकार का है। इसके साथ ही उसने यह भी कहा की राज्य सरकार को अपने क्षेत्राधिकार से आगे काम नहीं करना चाहिए। इस काम के लिए बिहार सरकार ने फालतू में 500 करोड़ रुपए की बर्बादी की है।
वहीं इस मामले पर राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल पी के शाही ने कोर्ट में पक्ष रखते हुए कहा कि इस जातिय गणना का उद्देश्य आम नागरिकों के संबंध में आंकड़ा एकत्रित करना है। और इस आंकड़े का उपयोग लोगों के कल्याण के लिए ही किया जाएगा। इसके साथ ही कोर्ट को उन्होंने बताया कि जाति संबंधी सूचना शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश या नौकरियों लेने के समय भी दी जाती है इसलिए सरकार इसकी गणना कर रही है। साथ ही इससे हर धर्म के अलग अलग जातियों के समाज में हिस्सेदारी का भी पता लगाया जाएगा।