भारत के कुछ ऐतिहासिक पूजनीय स्थलों में से एक स्थल Gyan Vapi मस्जिद भी है जिसके परिसर में कुछ वैज्ञानिको ने historical source का पता लगाने के लिए प्रयास शुरू कर दिया है। इस कार्य की सबसे खास बात ये है कि जांच पड़ताल के दौरान मस्जिद को कोई हानि नहीं पहुँचाया जाएगा। वैज्ञानिको का मुख्य मकसद ये है कि वो पता लगा पाए कि मस्जिद परिसर के ज़मीन तले कुछ ऐतिहासिक चीज दबे हुए तो नहीं है।
अगर ये खोज कुछ वर्ष पहले होती तब इस खोज को करने के लिए मस्जिद को तोड़-फोड़ करना परता, परंतु आज हमारे पास GPR जैसी महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी है जिसके मदद से जमीन के अंदर की तस्वीर ली जा सकती है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में ASI ने शनिवार को दूसरे दिन ज्ञानवापी परिसर में वैज्ञानिक सर्वेक्षण का काम शुरू कर दिया है।
ज्ञानवापी परिसर में वैज्ञानिक सर्वेक्षण के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण है कि मस्जिद का निर्माण कहीं हिन्दू मंदिर के ढांचे पर तो नहीं हुआ है इसका का पता चल सके।
ASI के पूर्व एडिशनल डायरेक्टर ने दी कुछ विशेष जानकारियां
ASI के पूर्व एडिशनल डायरेक्टर जनरल बी.आर. मणि ने कहा, ‘GPR’ टेक्नोलॉजी में कुछ विशेष प्रकार के उपकरण शामिल होते हैं जिसकी सहायता से विद्युत चुम्बकीय तरंगों को जमीन के नीचे उप-सतह स्तर पर भेजा जाता है। अथवा इन तरंगो का ईंट, रेत, पत्थर और धातुओं जैसी किसी भी चीज से संपर्क होने पर इसे एक मॉनिटर के द्वारा रिकॉर्ड किया जाता है।
इसके अध्यन के माध्यम से वैज्ञानिक ज़मीन के भीतर किसी ठोस वस्तु के मौजूदगी का पता करते है। ज्ञानवापी परिसर में जीपीआर सर्वेक्षण से यह साबित हो जाएगा कि मस्जिद के नीचे कोई ढांचा दबा हुआ है या नहीं और अगर है तो वह किस तरह का ढांचा है। GPR टेक्नोलॉजी के मदद से मस्जिद को बिना हानि पहुंचाए जानकारी प्राप्त की जाएगी।
GPR टेक्नोलॉजी को सही रूप से उपयोग करने हेतु मैग्नेटोमीटर, रेडियोमीटर, फ्लक्सगेट सेंसर और रिमोट सेंसिंग जैसे विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है। इलाहाबाद High Court से मंजूरी पाने के बाद ASI शुक्रवार सुबह ज्ञानवापी परिसर में दाखिल हुई थी और सर्वेक्षण कार्य शुरू किया था। शुक्रवार को मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने भी सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। GPR टेक्नोलॉजी के मदद से मस्जिद से जुड़े धार्मिक भाव को भी आहात नहीं पहुँचाया जाएगा।