भारतीय सिनेमा के लिए एक दुखद खबर आ रही है। प्रख्यात फिल्मकार Kumar Shahani का 83 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। पारिवारिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, वह कई तरह की बीमारियों से पीड़ित थे। शाहनी को समाजवादी यथार्थवाद और प्रयोगधर्मिता के लिए जाना जाता था। उन्होंने अपने फिल्मी करियर में ऐसी फिल्में बनाईं, जिन्होंने समाज की गहरी सच्चाईयों को बयां किया और दर्शकों को सोचने पर मजबूर किया।
शाहनी का फिल्मी सफर
Kumar Shahani का जन्म 1940 में पाकिस्तान के लाहौर में हुआ था। बाद में वो भारत आ गए और यहीं फिल्म निर्माण में अपना करियर बनाया। उन्होंने 1975 में फिल्म “मयदा मसाल” से निर्देशन की शुरुआत की। इस फिल्म ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। इसके बाद उन्होंने “उम्मीद,” “तर,” “हंसते हंसते,” “मसूम मशाल” जैसी कई शानदार फिल्में बनाईं। शाहनी की फिल्मों में न सिर्फ सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को उठाया गया, बल्कि सिनेमाई रूप से भी वो प्रयोगधर्मी थीं। उनकी फिल्मों में गहरे अर्थ छिपे होते थे, जो दर्शकों को बार-बार सोचने पर मजबूर करते थे।
शाहनी को मिले पुरस्कार और सम्मान
Kumar Shahani को उनके फिल्मी योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें 1982 में फिल्म “उम्मीद” के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। इसके अलावा उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड और ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। Kumar Shahani ने न सिर्फ राष्ट्रीय पुरस्कार जीते बल्कि अलग-अलग समय में तीन फिल्मफेयर अवार्ड भी अपने नाम किए। 1973 में ‘माया दर्पण’, 1990 में ‘ख्याल गाथा’ और 1991 में ‘कस्बा’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड मिला था।
शाहनी का निधन एक बड़ी क्षति
Kumar Shahani का निधन भारतीय सिनेमा के लिए एक बड़ी क्षति है। वो एक ऐसे फिल्मकार थे जिन्होंने सिनेमा को सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि समाज का आईना माना। उन्होंने अपने फिल्मी करियर में ऐसी फिल्में बनाईं, जो आज भी प्रासंगिक हैं और लोगों को सोचने पर मजबूर करती हैं।