भारतीय Scientists हर एक रॉकेट के प्रक्षेपण के साथ ही अनूठे परीक्षण करते रहते हैं। ऐसे में इस बार भारतीय वैज्ञानिक PSLV C-56 रॉकेट के ताजा प्रक्षेपण की सफलता के बाद एक नया और अनूठा परीक्षण किया है। इस बार के परीक्षण में वैज्ञानिकों ने यह बताया है कि किसी भी सफल प्रक्षेपण के बाद अंतरिक्ष में जमा हो रहे रॉकेट के मलबों को किस तरह से हटाया जा सकता है।
इस बार के प्रक्षेपण में सिंगापुर के उपग्रहों को अंतरिक्ष में करीब 535 किलोमीटर ऊंचाई पर सफलता से स्थापित के काम पूरा हो जाने के बाद रॉकेट के बचे हुए हिस्से को वापस पृथ्वी की ओर 300 किमी ऊंची कक्षा में लाया गया। अब यह मलबा अगले दो महीने में पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करते ही नष्ट हो जाएगा। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो हर बार की तरह इह बार भी रॉकेट का मलबा अंतरिक्ष में ही जमा रहता।
क्या कहा मिशन निर्देशक ने?
इस नए प्रक्षेपण के बारे में बताते हुए पीएसएलवी के मिशन निर्देशक एसआर बीजू ने बताया कि अंतरिक्ष में प्रक्षेपण कर रहे वैज्ञानिकों की अब आदत हो गई है किसी ना किसी अतिरिक्त परीक्षण को करने की। उन्होंने बताया कि उनकी टीम ने इस बार चौथे चरण के साथ अनूठा और सफल परीक्षण अंजाम दिया है।
उन्होंने बताया कि सिंगापुर के उपग्रहों को अंतरिक्ष में 535 से 570 किमी ऊंची निर्धारित कक्षा में पहुंचाने के बाद हमने अपने रॉकेट को वहीं भटकता छोड़ने के बजाय कुछ नीचे स्थित कक्षा में लाने का निर्णय लिया। ऐसा करने से अंतरिक्ष में मलबा घटेगा और उपग्रहों व मिशन को नुकसान की आशंका भी कम होगी।
क्या किया जाता था इससे पहले?
आमतौर पर इससे पहले यह होता था की किसी भी मिशन को सफल होने के बाद उसके बचे हुए मलबे को वहीं छोड़ दिया जाता था। जिसके बाद यह मलबा अंतरिक्ष में दशकों तक भटकता ही रह जाता था। जिसके बाद जब अंतरिक्ष में कोई और उपग्रह भेजे जाते थे तो उस वक्त उसे उन मलबों से टकराने का खतरा रहता था।
लेकिन इस बार भारतीय वैज्ञानिकों ने सभी उपग्रह अलग करने के बाद पीएसएलवी रॉकेट को वापस पृथ्वी की ओर लाने का चौथा चरण रखा है। जिसमें रॉकेट के बचे हिस्से को नियंत्रित ढंग से पृथ्वी की ओर निचली कक्षा में लाया जाएगा। जिससे यह होग की रॉकेट का बचा हुआ हिस्सा कुछ महीने बाद पृथ्वी के वातावरण में दाखिल होकर खुद ही नष्ट हो जाएगा।