Kaichi Dham: कैंची धाम की स्थापना 15 जून 1964 को हुई थी। आज के दिन यह धाम अपना 59वां स्थापना दिवस मना रहा है। अल्मोड़ा राजमार्ग पर बना कैंची धाम बाबा Neem karoli की स्थली होने के साथ सदियों से आध्यात्मिक मान्यताओं का केंद्र भी रहा। ऐसा माना जाता है कि साल 1961 में पहली बार नीम करौली बाबा अपने मित्र पूर्णानंद के साथ कैंची धाम की स्थापना की। रिचर्ड एलपर्ट ने अपनी किताब ‘मिरेकल ऑफ लव’ में रामदास के बारे में लिखते हुए कहते हैं कि नीमकरौली बाबा हमेशा कंबल ओढ़ते थे। यही मेन कारण है जिसकी वजह है कि कैंची धाम में जो भी जाता है वो कंबल भेंट करता है। वहीं इस दिन नीम करौली बाबा को खासतौर से मालपुए का भोग लगाया जाता है, जिसे बनाने के लिए मथुरा से 45 कारीगर कैंची धाम पहुंचे हैं।
यहां हर साल 15 जून को प्रतिष्ठा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसकी पिछे भी एक ख़ास वजह है दरअसल, ऐसा माना जाता है कि यहां हनुमानजी और दूसरी मूर्ति की प्रतिष्ठा के लिए अलग-अलग सालों की 15 जून को चुना गया है। और बाबा ने खुद भी 15 जून की तारीख को धाम के प्रतिष्ठा दिवस के लिए तय किया था। जिसके बाद 10 सितंबर 1973 को उन्होंने शरीर त्याग कर महासमाधि ले ली थी। उनके समाधि लेने के बाद उनके अस्थिकलश को धाम में स्थापित कर साल 1974 से मंदिर के निर्माण कार्य को बड़े स्तर पर शुरू किया गया। इस आश्रम की ओर जाने वाली सड़क पर दो तीखे मोड़ होने के कारण इसका नाम कैंची धाम पड़ा।
बाबा नीम करौली का जन्म उत्तर प्रदेश में फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गांव में हुआ था। वहीं उन्होंने नैनीताल भुवाली से 7 किलोमीटर दूर कैंची धाम आश्रम की स्थापना की। मान्यता के अनुसार नीम करौली बाबा को मात्र 17 साल की उम्र में ईश्वर के बारे में विशेष ज्ञान प्राप्त हो गया था। जिसके बाद वो भगवान हनुमान को अपना आराध्य देवता मानने लगे थे। यही वजह रही कि उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में भगवान हनुमान के 108 मंदिरों का निर्माण कराया। वो अपनी चमत्कारिक सिद्धियों के जरिए लोगों का उद्धार करते थे। आश्रम की स्थापना के बाद उनके चमत्कारों के करण उनकी चर्चा देश विदेशों तक पहुंचने लगी।